Saturday 10 September, 2011

भारत के संविधान में अनुसूचित जनजातियों की पहचान विधि

अनुसूचित जनजाति शब्द सर्वप्रथम भारत के संविधान द्वारा प्रयुक्त हुआ। धारा ३६६(२५)अनुसूचित जाति को इस प्रकार परिभाषित करती है ÷ऐसी जनजाति या जनजातिय समुदाय या इस प्रकार की जनजाति के जनजातीय समुदाय का भाग या समूह जैसा कि अनुछेद ३४२ के अन्तरगत मानित है संविधान के लिये अनुसूचित जनजाति है।' अनुछेद ३४२ जो कि नीचे दी गयी है, जनजातियों की पहचान विधि बताती है।
३४२ अनुसूचित जनजाति (1) राष्ट्रपति किसी भी राज्य या संघशासित क्षेत्र के संबंध में और जहां राज्य है, राज्यपाल के सलाह से सामान्य सूचना के द्वारा जनजाति या जनजातीय समूह या के भाग, या जनजातीय समुदाय को संविधान के प्रयोग के लिए राज्य या के.शा.प्र के सम्बन्ध में मानित कर सकता है, जैसा कि परिस्थिति हो। (२१ उपखण्ड (१) के द्वारा संसद सूची में, किसी भी जनजाति, जनजातीय समुदाय या जनजाति या जनजातीय समुदाय के भीतर समूह या भाग को डाल या निकाल सकती है परन्तु इस आदेश के विपरीत कोई अन्य तुरन्त आदेश नहीं होना चाहिए।
इस प्रकार अनुसूचित जनजातिय की पहली पहचान,किसी भी राज्य अथवा के.शा.प्र. के सम्बन्ध में राष्ट्रपति द्वारा राज्य पाल से सलाह के पश्चात की जाती है। इसके बाद यह आदेश संसद के द्वारा संसोधित किया जा सकता है। उपरोक्त धारा के अन्तरगत सूची राज्य के आधार पर बनायी जाती है न की सम्पूर्ण देश के आधार पर।
(2) अनु. जनजाति की पहचान उनके पिछड़पन, आदिम, गुणों, अलग संस्कृति भौगोलिक अलगाव, अन्य बड़े समुदायों से सम्पर्क के आधार पर किया जाता है। यह आधार संविधान में लिखित नहीं है पर पूर्णमान्य है इसकी परिभाड्ढा १९३१ की जनगणना, पहली पिछड़ी जाति आयोग (कालेकर)१९५५, अनु.जाति/जनजाति को आरक्षण के मामले पर सलाहकार समिति (लाकुर कमेटी), १९६५, और अनुसूचित जाति और जनजाति (संसोधित) बिल १९६७ (चन्द्रा आयोग), १९६९ के आधार पर है।
 (3) भारतीय संविधान की अनुछेद ३४२ के उपखण्ड (१)के दिये अधिकारों का प्रयोग करते हुए , राष्ट्रपति ने राज्य के राज्यपालों से सलाह अब तक ९ राज्यों से सम्बन्धित अनुसूचित जनजाति आदेश जारी किए हैं। इनमें से ८ अपने रूप में या संशोधित रूप में कार्यरत है। एक आदेश संविधान (गोवा, दमन दीव) अनु.जनजाति आदेश १९६८,गोवा दमन व दीव के पुर्नगठन के बाद निष्प्रभावी हो गया। गोवा दमन व दीव पुर्नगठन एक्ट के, १९८७ (१९८७ से १८) के बाद गोवा के अनुु.जनजाति की सूची भाग १९, संविधान (अनु. जनजाति)आदेश, १९५० अनुसूचि में स्थानांतरित कर दी गयी है और दमन व दीव की संविधान (अनु. जनजाति) (के.शा.प्र.) आदेश १९५१, अनुसूचित के भाग २ में।



अनुसूचित जनजाति प्रमाणपत्र जारी करना ध्यान देने योग्य बातें
सामान्य
जब एक व्यक्ति जन्म से अनु.जन.होने का दावा करता है तो निम्न बाते प्रमाणित की जानी चाहिए-

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कि वह व्यक्ति और उसके माता पिता बनाये गये समुदाय से सम्बन्धित हैं
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कि वह समुदाय राष्ट्रपति द्वारा जारी, राज्य के संबंध में आदेश में अनु.जन. के रूप में सम्मिलित है।
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कि वह व्यक्ति उसी राज्य में तथा क्षेत्र में रहता है जहां उस समुदाय को अनुसूची में रखा गया है।
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उसका धर्म कोई भी हो सकता है
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कि वह राष्ट्रपति आदेश जारी होने के दिन तक उस राज्य का स्थायी निवासी होना चाहिए।
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ऐसा व्यक्ति जो आदेश जारी होने के समय अपने स्थायी निवास से अस्थायी रूप में किसी कार्य के लिए बाहर रहा हो जैसे कि शिक्षाग्रहण करने के लिए या जीविका के लिए तो उसे अनुसूचित जनजाति माना जा सकता है, यदि उसके समुदाय को राज्य से सम्बन्धित आदेश में स्थान दिया गया है। परन्तु उसे अपने अस्थायी निवास में ऐसा नहीं माना जा सकता भले ही उसके जनजाति का नाम उस क्षेत्र से संबंधित आदेश में हो।
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ऐसी स्थिति में अगर व्यक्ति राष्ट्रपति आदे के बाद जन्मा है तो उसके निवास स्थान को आदे जारी, होने की तिथि तक उनके मामा पिता के आवास को माना जाएगा, जिसके अन्तर्गत वह अनु.जन होने का दावा करता है।

 अनुसूचित जन जाति स्थानांतरण का दावा-
(१) यदि व्यक्ति ऐसे राज्य से, स्थानांतरित होता है, जहां उसके समुदाय को अनु. जन का स्थान मिला है, किसी ऐसे राज्य में जहां उसका समुदाय अनूसूची में नहीं है तो उसे उसी राज्य का अनु.जन माना जाएगा।
(२)जहां एक व्यक्ति एक राज्य से दूसरे राज्य में स्थानांतरण करता है। तो वह उसी राज्य का अनु.जन होने का दावा कर सकता है जहां का वह मूल निवासी है, न कि उस राज्य का जहां वह स्थानांतरण करता है।
अनुसूचित जाति दावा विवाह द्वारा
निर्देशक सिद्वान्त यह कहते हैं कि कोई भी व्यक्ति जो अनु. जन. जन्म से नहीं है सिर्फ अनुसूचित जाति से संबंधित व्यक्ति से विवाह करके अनु जन. नहीं हो सकता।
इसी प्रकार कोई व्यक्ति जो कि अनु. जन. है, किसी ऐसे व्यक्ति से विवाह करने के बाद भी जोकि अनु. जन. नहीं है, अनु. जन. बना रहेगा।
अनुसूचित जन जाति प्रमाणपत्र जारी करनाः
अनुसूचित जन जाति से संबंधित व्यक्ति को उसके दावे के समर्थन में निर्धारित स्वरूप में निर्धारित अधिकारियों द्वारा जारी किया जा सकता है।
बिना पूर्ण खोज बीन के प्रमाण पत्र जारी करने वाले अधिकारियों के लिए सजाः ऐसे अनुशासनात्मक कार्यवाही के अलावा भारतीय दंड सहिता के अनुसार बिना पूर्ण खोजबीन व असावधानी पूर्वक प्रमाण पत्र जारी करना करने के जुर्म में यदि पाया जाता है।
एक के. शा. प्र. राज्य से दूसरे राज्य के.श.प्र. से स्थानांतरित अनु. जनजाति को प्रमाण पत्र संबंधी विधानो में मुक्तिः
अनु. जनजाति से संबंधित व्यक्ति यदि रोजगार या शिक्षा के उद्देश्य से एक राज्य से दूसरे राज्य को स्थांनांतर करता है उसे अनु जन. प्रमाण पत्र प्राप्त करने में बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। इस कठिनाई को मिटाने के उद्देश्य से यह निर्णय लिया गया कि जहां वह व्यक्ति स्थानांतरित हुआ है उस राज्य का निदिष्ट अधिकारी व्यक्ति को उसके माता पिता को जारी प्रमाणपत्र के आधार पर प्रमाणपत्र जारी कर सकता है, इसके अलावा कि वह अधिकारी महसूस करता है कि खोज - बीन आवश्यक है। भले ही उस राज्य में यह समुदाय अनु. जन सूची में न हो, प्रमाणपत्र जारी किया जाएगा यद्यपि वह उस राज्य के अनु.जन. के लाभ से वंचित रहेगा

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